इसको महज़ चुहल ना समझो यह नेहा की पाती तुमसे लगन अगन बन गइ है दिन रैना तड़पाती अंक तुम्हारे जिऊँ मरू मैं स्वांस तेरी बन जाऊं मेरी आरजू पूरी कर दो तड़पत ना मर जाऊं सह ना सकूँ बिरह की पीड़ा हुमक रुलाई आवे किससे कहूँ दर्द मैं दिल कौन समझ में आवे पर्वत