मावठे की ठिठुरन में  ताज़ा ताज़ा जवां हुई  एक नव यौवना  ओस की बूँद उमंग में लहकती  बहकती ठिठकती  लुढ़कती संभलती  अपनी आश्रय दाता  जूही की एक पत्ती से लड़याती इठलाती इतराती बतियाती पूछती है- तुम्हें चिड़चिड़ाहट नहीं होती  ऐसा स्थिर जीवन बिताने में  कोई घबराहट नहीं होती  क्या तुम्हें नहीं भाते  झरनों