ग़ज़ल-कश्मीर उन्हें इतनी शिकायत है, कि सब उनको नहीं देता मेरे हिस्से का मेरा आसमां, उनको नहीं देता। यही अंदाज़ है मेरा, नज़र अंदाज़ करता हूँ जो नामाकूल हैं उनको, तवज़्ज़ो मैं नही देता। नज़र मुझसे बचाकर चल दिये हो, याद भी रखना मुक़द्दर एक सा हर दिन, ख़ुदा सबको नहीं देता। हिसाबी मुआमला था