February 16, 2016
कविता-कल की खातिर/kavita-kal Ki khatir
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अनगढ़ सपनों की खातिर सुख चैन झोंकते जाते हो कल की खातिर वर्तमान का गला घोंटते जाते हो! जो बीता बो बृस्मित कर दो याद ना करना मत ढोना चाहे बिष था या अमृत था ना खुश होना-ना रोना इक इक पल का लुफ़्त उठाओ यह क्षण लौट ना आयेगा आज जिसे तुम