उदारमना, तुम्हें क्षोभ किस बात का मैं तो निर्जन में पनपा एक दुर्बल तनका पौधा हूँ  जो कभी बड़ा ही नहीँ हुआ अभी ढंग से खड़ा भी नहीँ हुआ सदा निराशा में बिंधा चंद टहनियों की जवाबदारियों में बंधा राह तकता हुआ किसी अन्जाम की किसी परिणाम की, यकबयक तुम्हारे प्रकाट्य से जीवन में ढंग आ गया