January 11, 2017
ग़ज़ल-बेशरम। Gazal-Besharam । तक़रार की ग़ज़ल । रुसवाई की ग़ज़ल । अलगाव की ग़ज़ल । एक प्यारी सी ग़ज़ल
![](https://i0.wp.com/udtibaat.com/wp-content/uploads/2017/01/PicsArt_04-04-10.20.25.jpg?resize=150%2C150&ssl=1)
ग़ज़ल-बेशरम : मोहब्बत में रुसवाई हो जाती है, लड़ाई हो जाती है, अलहदगी तक भी हो जाती है लेकिन बेशरम दिल का क्या करें, याद उसी बेमुरब्बत को करता है जिसने दिल को दर्द दिया है। इसीलिये शायद कहा जाता है कि दिल है कि मानता नहीँ। इस आर्टिकल में प्रस्तुत ग़ज़ल-बेशरम में ऐसे ही अलहदगी