‘कौन है’ कंपकंपाती भौंहें थरथराता ललाट नशीली आँखें मुंदी पलकें पलकों की बेसुध कोरें कोरों में नमी नमी में तसव्वुर तसव्वुर में मुस्कराता कौन है जो मौन है सघन-घने सुरमई गेसू गेसुओं की चन्द उन्मत्त लटें टोली से बाहर विद्रोह कर उतर आती हैं कपोलों पर किलोलें करने कपोलों पर लज़्ज़ा जहाँ फैली है हया