Love poem-मोह हाँ शायद, मैं नही जानता और कैसे जानूँ तुमने ह्रदय पट ही नही खोले बहुत कुछ कहा होगा कहा है मगर कुछ भी तो नहीं बोले मंदाकिनी हो तो बहती भी होगी किन्तु क्षमा करना दायरों में ही रहती होगी तो आस का क्या वो तो टूटेगी अब तुम्हीं बताओ टूटन में क्या