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कविता ‘नव यौवना’ । Kavita ‘Naw yovna’

    मावठे की ठिठुरन में  ताज़ा ताज़ा जवां हुई  एक नव यौवना  ओस की बूँद उमंग में लहकती  बहकती ठिठकती  लुढ़कती संभलती  अपनी आश्रय दाता  जूही की एक पत्ती से लड़याती इठलाती इतराती बतियाती पूछती है- तुम्हें चिड़चिड़ाहट नहीं होती  ऐसा स्थिर जीवन बिताने में  कोई घबराहट नहीं होती  क्या तुम्हें नहीं भाते  झरनों

रोमांटिक कविता ‘प्रेम दुहाई’। Romantik Kavita ‘Prem Duhai’।

इसको महज़ चुहल ना समझो यह नेहा की पाती तुमसे लगन अगन बन गइ है दिन रैना तड़पाती अंक तुम्हारे जिऊँ मरू मैं स्वांस तेरी बन जाऊं मेरी आरजू पूरी कर दो तड़पत ना मर जाऊं सह ना सकूँ बिरह की पीड़ा हुमक रुलाई आवे किससे कहूँ दर्द मैं दिल कौन समझ में आवे पर्वत

कविता-‘उम्मीदें’/Kavita-‘Umeeden’

अब फिर से उम्मीदें  बढ़ने लगी हैं  तितलियां जो कमजोर थीं  उड़ने लगी हैं  उमंगों में नईं कोंपलें  फूटने लगी हैं  मायूसी की दीवारें  टूटने लगी हैं  धड़कनें  ग़ज़ल गुनाने लगीं हैं  नई कवितायें  भी समझ आने लगीं हैं  तो क्या  फिर से बहार आई है  तो क्या  फिर से घटा छाई है  बात  समझ