हमारे संचालक द्वय………………….जी और……………………जी को बहुत बहुत धन्यवाद। मंचासीन गण मान्य विभूतियों को समर्पित इन चार पंक्तियों के साथ मै अपनी बात शुरु करना चाहूंगा कि.  .    ‘कहाँ हैं ऐसे लोग जो निस्पृह रण में जूझने जाते हैं परहित में निजहेतु त्यागकर प्यार बाँटते जाते हैं आशाओं के पुष्प पल्लवित होते इन्हीं मालियों