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संयम स्वर्ण महोत्सव – आचार्य श्री विद्यासागर के 50वें संयम स्वर्ण महोत्सव पर कविता

संयम स्वर्ण महोत्सव – महामनीषी, महाकवि, संत शिरोमणि, अहिंसा के दिव्य दूत जैनाचार्य गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के बारे में जितना पढ़ा जाये, जाना जाये कम ही है। अखंड ब्रम्हचर्य और दुष्कर दिगम्बरत्व पंथ के श्रेष्ठ पद पर निर्दोष चर्या के अनुपालन के 50 बर्ष क्या पूर्ण हुये। सारी दुनियाँ में उनकी जय जयकार

संत जैन आचार्य 108 श्री विद्यासागर महाराज जी पर कविता। sant Jain Acharya 108 Shri Vidyasagar Maharaj ji par poem

 चित्र साभार-vidyasagar.net   -आचार्य श्री के चरणों में 4 पंक्तियाँ- कैसे कह दूँ क्यों बहती हैं, मैं क्या जानूं क्या कहती हैं होकर बे-होश बहक जातीं, भीगी-भीगी सी रहती हैं भगवान अगर यूँ मिल जायें, कोई कैसे ना बेसुध हो गुरुवर को देख छलक जातीं, अखिंयां मेरी रो पड़ती हैं।   -आचार्य श्री विद्यासागर जी