ग़ज़ल-सोहबत ये शोर कैसा है धड़कनों में, ऐ दिल बता कि क्या चल रहा है क्यों सारा आलम ये सारा मौसम, ज़हान सारा मचल रहा है। मैं कैसे कह दूँ क्या हो रहा है, कि सीने में इक कसक उठी है घुला हुआ है शहद फ़िज़ा में, कोई गुलाबों पे चल रहा है। हमारा
ग़ज़ल-नवाज़िश नींद में चांद चल रहा होगा।। ख़्वाब कोई मचल रहा होगा। हूक़ उठती है दिल लरज़ता है कोई कहके बदल रहा होगा। वो हवाओं से बैर क्यों लेगा जो चिरागों सा जल रहा होगा। आँख नींदों से भर गया कोई ख़्वाब नैनों में मल रहा होगा। आप आये बड़ी नवाज़िश है आपका दिल पिघल
ग़ज़ल-बेशरम : मोहब्बत में रुसवाई हो जाती है, लड़ाई हो जाती है, अलहदगी तक भी हो जाती है लेकिन बेशरम दिल का क्या करें, याद उसी बेमुरब्बत को करता है जिसने दिल को दर्द दिया है। इसीलिये शायद कहा जाता है कि दिल है कि मानता नहीँ। इस आर्टिकल में प्रस्तुत ग़ज़ल-बेशरम में ऐसे ही अलहदगी
मोहब्बत से भरी दो प्यारी ग़ज़लें – कहते हैं ज़िंदगी का सबसे मुश्किल लम्हा वो होता है जब हमें किसी के सामने अपने इश्क़ का इज़हार करना हो। ज्यादातर प्यार करने वाले यहीं अटक जाते हैं। किसी की मोहब्बत में जीवन भर ठंडी-ठंडी साँसे, दर्द भरीं आहें भरने से अच्छा होता है अपने प्यार का
ग़ज़ल तेरे रुख़सार की रंगत गुलाब देखेंगे छलकता नूर सुबह शाम आब देखेंगे इक यही ख्वाब है दीदार तेरा हो जाये हमें हक है कि हम भी माहताब देखेंगे मैं जिद भी करता हूँ तो एक बार करता हूँ तुम्हे मिलता या हमें आफ़ताब देखेंगे हमारे इश्क को ‘मौलिक’ मजाक ना समझो वो हम ही