तुमने कहा  बहकना  ठीक नहीँ  तो फ़िर यूँ  चहकना भी  ठीक नहीँ,  तुम पात्र ही नहीँ  रस पीने के  कुचल क्यों नहीँ देते  अरमान  सब सीने के  देखो,  सतत बनी हुई  एकरसता  रुग्ण कर देती है  बनावटी  सात्विकता  अवसाद भर देती है  गुंजाइश सदा ही होती है  नये पंखों की  नये अंकुर की  लेकिन  पहले तय करो कि