ग़ज़ल-नवाज़िश नींद में चांद चल रहा होगा।। ख़्वाब कोई मचल रहा होगा। हूक़ उठती है दिल लरज़ता है कोई कहके बदल रहा होगा। वो हवाओं से बैर क्यों लेगा जो चिरागों सा जल रहा होगा। आँख नींदों से भर गया कोई ख़्वाब नैनों में मल रहा होगा। आप आये बड़ी नवाज़िश है आपका दिल पिघल
ग़ज़ल-बदमाश मेरा हाल क्या है न पूछिये ये न ख़ास था ये न ख़ास है दिल कल भी था यूँ ग़मज़दा और आज भी ये उदास है। यूँ तमाशा होता है रात दिन मेरी हसरतों का न पूछिये गोया रहनुमा हो बहार का जिसे खुश्बुओं की तलाश है। ये नज़ारे चाँद धनुक घटा तेरा नूर
ग़ज़ल-बेशरम : मोहब्बत में रुसवाई हो जाती है, लड़ाई हो जाती है, अलहदगी तक भी हो जाती है लेकिन बेशरम दिल का क्या करें, याद उसी बेमुरब्बत को करता है जिसने दिल को दर्द दिया है। इसीलिये शायद कहा जाता है कि दिल है कि मानता नहीँ। इस आर्टिकल में प्रस्तुत ग़ज़ल-बेशरम में ऐसे ही अलहदगी