Poem in falling love in hindi । poem in being love in hindi । दो बेहद रोमांटिक हिंदी कवितायें । Love Poems in hindi
‘कौन है’
कंपकंपाती भौंहें
थरथराता ललाट
नशीली आँखें
मुंदी पलकें
पलकों की
बेसुध कोरें
कोरों में नमी
नमी में तसव्वुर
तसव्वुर में मुस्कराता
कौन है जो मौन है
सघन-घने
सुरमई गेसू
गेसुओं की चन्द
उन्मत्त लटें
टोली से बाहर
विद्रोह कर
उतर आती हैं
कपोलों पर
किलोलें करने
कपोलों पर लज़्ज़ा
जहाँ फैली है हया
हया में लाली
लालियों में सुरूर
इस सुरूर में
कभी आता कभी जाता
कौन है जो मौन है
रेशमी पल्लू
पल्लू में बैचेन वक्ष
असंतुलित सा होता
छिन्न भिन्न
तालमेल से दूर
स्वांस के साथ
स्वांस के विरुद्ध
स्वांसों में घुला चन्दन
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विवश अधीरता
इस अधीरता में
मदमदाता समीप आता
कौन है जो मौन है
सिंदूरी हाँथ
हाथों में बंधी मुट्ठियां
मुट्ठियों में सिमटी
सुघड़ अंगुलियां
अंगुलियों के पोरों से
लिपटीं अंगूठियां
अंगूठियों के नगीनों में
खिलता रौशन नूर
इस नूर में खिलखिलाता
कौन है जो मौन है
सुडौल पैर
मादक पिंडलियां
पिंडलियों में बंधी पायल
पायल में सितारों की
गुलालों सी रंगीनियां
बनाती हैं रंगोलियाँ
रचती हैं सौभाग्य
प्रत्येक, दायरे से
बाहर आने को उतारू
चहलकदमी के साथ
इन विवश कदमों की
आहटों में सरसराता
गुनगुनाता निकट आता
कौन है जो मौन है
‘मधुपेय’
निस्तब्धता के छोर से
जहाँ से रात
अपनी चादर फैलाती है
वहीं कहीं
नेपथ्य से
ढेरों सितारों
की रजत पंक्तियों
के बीच शाही रथ में
सवार चाँद निकलता है,
टकटकी लगाकर
तकना आरम्भ होता है
तारों का, बसुंधरा को
तभी
घुंघरुओं में लिपटी
चांदनी उतरती है
दबे पांव
चाँद की हथेलियों से
और फिर
लंबे लंबे कदमों से
तय करती है
क्षितिज की राहदरी
बिखेरने लगती है
क़ायनात के
कोने कोने में
राग यमन की
तानें टप्पे मुरकियाँ
और तीन ताल पर
थिरकने लगतीं हैं
दिशायें हवायें आलम।
तृण तृण में पसरती
मदहोशी को
दामन में समेटे
देवालय के शिखर से
फिसलती हुई
पुनः बढ़ जाती है
हवेली के उत्तर पूरब में,
जहाँ ध्रुवनंदा
बह रही होती चुपचाप।
जल से भरी है नदी
किन्तु प्यास है
चाँद का अंश
घोलकर लहरों में
थपथपा कर कपोल
आगे बढ़ जाती है
और फिर
लिपट जाती है
मुखिया के मीठे पानी
वाले कुएं के पास सोई
जूही की कुम्हलाई
पंखुड़ियों से,
सकुचाई लजाई जूही
मुग्ध हो जाती है,
और मुहल्ले में मौज़ूद
यौवनांगी
रातरानी की तरफ
चोर नज़र से देख
छू लेती है
धीरे से
चाँद का स्पर्श।
तभी एक शरारती
झौंका छेड़ते हुये
निकल जाता है
समीप से
भरकर
अपनी अंजुलि में
मोहब्बत का मधुपेय
पिलाने को
हवाओं को
सुलाने को
फ़िज़ाओं को।
वाह्ह्ह वाह्ह्ह खूबसूरत ,अति सुंदर ,अप्रतिम आपकी रचना कवि महोदय…???????
शब्द नहीं.मिल रहे जिससे आपकी बेजोड़ रचना के लिए सुंदर टिप्पणी कर पाऊँ।मनमोहक लिखा सच में आपने।
जी। आप जैसी उत्कृष्ट साहित्यकारा इतना मान देतीं हैं तो थोड़ा विचलित हो जाता हूँ। आपका बहुत बहुत शुक्रिया बहुत आभार।