ग़ज़ल-बेशरम : मोहब्बत में रुसवाई हो जाती है, लड़ाई हो जाती है, अलहदगी तक भी हो जाती है लेकिन बेशरम दिल का क्या करें, याद उसी बेमुरब्बत को करता है जिसने दिल को दर्द दिया है। इसीलिये शायद कहा जाता है कि दिल है कि मानता नहीँ। इस आर्टिकल में प्रस्तुत ग़ज़ल-बेशरम में ऐसे ही अलहदगी
आभार शायरी – सभी मंच संचालक मित्रों को स्नेहिल अभिवादन। मंचीय प्रस्तुतिकरण में अगर कोई सबसे महत्वपूर्ण क्रम होता है तो वो होता है अतिथियों का स्वागत क्रम। इस आर्टीकल आभार शायरी में अतिथि स्वागत शायरी एवम Gratitude shayari का प्रथम collection आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। आशा है इससे आप सबको कुछ सहायता
मोहब्बत का गीत – इश्क़ से तरबतर दिलों के लिये प्रस्तुत है गम और नासाज़ी से भरा आर्टिकल मोहब्बत का गीत । आशा है कि आप सबको पसंद आयेगा। मोहब्बत का गीत फिर वही ख़्वाब सपना कहानी हुई फिर वहीँ से शुरू ज़िन्दगानी हुई फिर वही बेबसी तू वहाँ मैं यहाँ मैं दीवाना हुआ तू दिवानी हुई।
सबसे पहले तो मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि मंच संचालन करना बिल्कुल भी कठिन काम नहीं है। मेरे अनुसार इसमें एक ही सिद्धान्त काम करता है कि ‘अगर आप बातचीत कर सकते हैं तो आप मंच संचालन भी कर सकते हैं।’ जी हाँ, मंच संचालन उतना ही सरल है जितना की बातचीत
भगवान बाहुबली पर कविता – विश्व की सबसे प्राचीन, सबसे बड़ी, सबसे उत्तंग खड्गासन मूर्ति भगवान बाहुबली की प्रतिमा जो कर्नाटक के बेल्लारी जिले मे गोमटेश्वर में स्थित है, अपने आप में एक आश्चर्य से कम नहीं है। भारत देश की शान इस जीवंत प्रतिमा के ऊपर प्रस्तुत यह आर्टीकल भगवान बाहुबली पर कविता उनके
अतिथि स्वागत गीत – स्वागत गीत की श्रृंखला में प्रस्तुत है अतिथि स्वागत गीत -2 यह आर्टिकल आपको कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर व्यक्त करें। अतिथि स्वागत गीत धन-धन हमारे भाग हैं, श्रीमन हमारे साथ हैं हम नमन अभिनंदन करें, तव जोड़कर द्वय हाथ हैं। अनुगृहित है मन मुदित है, श्री मन पधारे जो यहाँ
कोई तो सपना टूट गया है कोई तो अपना छूट गया है हम ख़ुद से हो गए बेगाने हमसे हमारा रूठ गया है कैसी मुरादों वाली ये बोली कैसी है वादों वाली बोली शहद में लिपटी ज़हर की गोली देकर कोई लूट गया है किसको दूँ तोहमत किसको दुहाई हमको मुहब्बत रास ना आयी फुरकत
ताली शायरी पार्ट 1 – उड़ती बात के सभी प्रशसंकों को अमित मौलिक का स्नेहिल अभिवादन। दोस्तों, मंच और ताली एक दूसरे के पूरक हैं। किसी भी मंचीय प्रस्तुति की सफलता का एक ही पैमाना होता है और वह है तालियाँ बजना। हालांकि कई बार अच्छी प्रस्तुति पर भी कमजोर तालियाँ आती हैं। ऐसा इसलिए
धुन्ध ही धुंध थी पूरा आसमान, सर पे उठा रक्खा था एक बार हुज़ूर क्या कह दिया हमने, आतंक मचा रक्खा था हमने इक रोज़ इमदाद मांग कर, उनकी हवा ख़राब कर दी जिन्होंने खुद को बहुत बड़ा, सुल्तान समझ के रक्खा था। बिना दुश्वारी के बिना तकलीफों के ये नामुराद ख़्वाब कहाँ संवरते