Kahani Bhram – कहानी भ्रम, एक ऐसी कहानी जो सोचने पर मज़बूर कर देगी
शौर्या भी आश्चर्यचकित हो कर फूट-फूट कर रोने लगी, और शीर्ष जज साहब के पैरों में गिरकर बोली ‘मुझे क्षमा कर दो, मेरा अपराध क्षमा योग्य तो नहीं है, आप जो चाहें सजा दें, उफ़ किये बिना मुझे हर सजा स्वीकार है।’
‘मैंने माँ और पत्नी होने का गर्व खो दिया लेकिन मैं बेटे और आप की सेवा करती करती घर के एक कोने में पड़ी रहूंगी। बिना किसी अधिकर के बस मुझे इतनी सी जगह दे दो अपने घर में।’ जज साहब से बिना नजरें मिलाये रोते रोते शौर्या ने कहा।
‘नहीं पता शौर्या मेरे प्यार, तुम्हारे सम्मान में क्या कमी रह गई थी। मैंने तो तुम्हें अपने ह्रदय की धड़कन की तरह प्यार किया है, बस वही समझ कर मैं तुम्हें क्षमा करता हूँ। तुम्हारी जगह मेरे चरणों में नहीं, मेरे दिल में है। तुम्हारी अभी भी वही जगह है जो पहले थी।’ जज साहब शौर्या को अपनी ओर खींच कर अपनी बाहों में भर लेते है।
सिया चक्कर खा कर ‘तू मुझे कहीं काल्पनिक कहानी तो नहीं सुना रही है।’
नीलू ने कहा, ‘नहीं भाभी मैं भी यही सोच कर हैरान, परेशान हूँ कि जज साहब के माता-पिता ने कितने अच्छे संस्कार दिये होगें, कितना स्त्री के लिए सम्मान देना सिखाया होगा, की इतनी बड़ी गलती को इतनी सहजता से माफ कर दिया।’
वह भी इतने बड़े ओहदे पर होने के बाबजूद इतनी संवेदना! इतनी करुणा! शायद यही सच्चा प्यार है। नीलू बोलते बोलते भावुक हो गई।
सिया कुछ पल के लिए फिर कहीं खो गई ‘और उस मजदूर का इतना बड़ा अहम कि उसने अपनी पत्नी को फिर से उस प्रेमी की तरह खुलेआम लोगों के सामने छोड़ दिया, गलती तो दोनों औरत ने की थी, बस इंसानों से जुड़े जज्बातो और संवेदनाओं का कमाल है वो उनसे कितना प्रभावित होता है।और रिश्तों को कितना प्यार का करता हैं।
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– लेखिका रिंकी जैन