Kahani Bhram – कहानी भ्रम, एक ऐसी कहानी जो सोचने पर मज़बूर कर देगी

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Kahani bhram, rinki jain ki kahaniyan

Kahani Bhramकहानी भ्रम, एक ऐसी कहानी जो सोचने पर मज़बूर कर देगी। नमस्कार पाठको। आपके समक्ष पुनः एक कहानी लेकर उपस्थित हूँ। यह कहानी संस्कारों और मानवीय संवेदना के झंझावातों की एक ऐसी तस्वीर आपके सामने प्रस्तुत करेगी कि ना चाहते हुये भी आप मेरे विचारों से सहमत होने को विवश हो जायेंगे। आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी। 

Kahani Bhram

सिया बच्चों और पति को स्कूल और ऑफिस भेजने के बाद टेबल से चाय और नाश्ते की कप-प्लेट उठा कर किचन में जा ही रही थी कि, अचानक से उसकी नज़र न्यूज़ पेपर की फ्रंट लाइन पर पड़ी। सिया ने टेबल पर ही कप-प्लेट रखकर न्यूज़ पेपर को हाथों में ले लिया और धीमें-धीमें, एक हाथ में न्यूज़पेपर लेकर तथा दूसरे हाथ से चेयर खिसका कर बैठ गई ।

“एक माँ अपने तीन मासूम बच्चों को छोड़ कर अपने पूर्व प्रेमी के साथ भाग गई।’

‘धिक्कार है!!’

ये जरूर कोई घर में काम करने वाली या मजदूरी करने वाली कोई छोटी जात की स्त्री होगी, वही ऐसा काम कर सकती है, जिसे अपनी मान मर्यादा का ख्याल नहीं हो। और अपने घर परिवार को तो छोड़ो, उसे अपने छोटे-छोटे मासूम बच्चों का ज़रा भी ख्याल नहीं आया। ऐसी औरत से क्या समाज और नाते रिश्तेदारों के लिए ज़रा भी लज्जा और मर्यादा की उम्मीद कर सकते हैं? वो हर रिश्ते के नाम पर सिर्फ और सिर्फ एक काला धब्बा है’ धब्बा। सिया सोचते सोचते थोड़ी चिड़चिड़ा सी गई।

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कॉल वेल की आवाज़ सुन कर सिया एकदम से चौंक गई ‘अरे मैं भी न, कहाँ खो गई थी ऐसा तो कुछ न कुछ सुनने को मिलता ही रहता है, इतनी बड़ी दूनिया है।’

दरवाज़ा खोला तो अपनी पड़ोसन को बेवक्त आता देख कर सिया बोली ‘अरे नीलू तू इतने सुबह-सुबह कैसे, और इतनी अस्त व्यस्त क्यों दिख रही है? सब ठीक तो है?’

‘अरे सिया भाभी बात ही कुछ ऐसे है कि तुम सुनोगी तो तुम भी भौचक्की रह जाओगी।’ नीलू जैसे बम फोड़ने को आमादा थी।

‘अरे पहले अंदर तो आओ फिर एक मोर्निंग टी के साथ बैठ कर तसल्ली से तेरी बात सुनती हूँ।’

‘अरे भाभी ये चाय-वाय छोड़ो आप अगर खबर सुनोगी न तो ऐसे ही बिना चाय के ही गर्म हो जाओगी।’ नीलू उतावली होकर बोली।

‘अरे ऐसा कौन से पहाड़ टूट पड़ा सुबह-सुबह।’ सिया हैरत भरे स्वर में बोली।

नीलू अतिउत्सुकता में सिया का हाथ पकड़ कर, जहाँ अभी भी खुले न्यूज़ पेपर के साथ कप प्लेट पड़े थे, वहाँ बैठ जाती है और कहती है कि ‘भाभी तुम्हें पता है अपनी कॉलोनी के जज, ‘शीर्ष साहब ,की पत्नी अपने एक वर्ष के बेटे को छोड़ कर अपने पूर्व प्रेमी वकील के साथ भाग गई है। निर्मोही,कलमुँही को जरा भी लाज शर्म न आयी कि बिचारे जज साहब का ओहदा मिट्टी में मिल जाएगा।’ नीलू दादी अम्मा की तरह दुनियादारी को लानत भेजते हुये बोली।

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