आतिश थी बेपनाह शमां ने फ़ना किया परवाने जल गए हैं इबादत किये वगैर सुलगी थी रूह अब्र में उड़ता रहा धुआँ दीवाने जल गये हैं मुहब्बत किये वगैर बे-होश रहीं आँखें घटा झूम के गिरी आंसू हथेलियों पै गिरे नीर के वगैर बांधे थे साथ हमने जहाँ मन्नतों के तार चुपचाप तोड़ आया शिकायत
मोहब्बत से भरी दो प्यारी ग़ज़लें – कहते हैं ज़िंदगी का सबसे मुश्किल लम्हा वो होता है जब हमें किसी के सामने अपने इश्क़ का इज़हार करना हो। ज्यादातर प्यार करने वाले यहीं अटक जाते हैं। किसी की मोहब्बत में जीवन भर ठंडी-ठंडी साँसे, दर्द भरीं आहें भरने से अच्छा होता है अपने प्यार का
ग़ज़ल आसमां है ना जमीं है पूछते हो क्या कमी है रात भर रोया है कोई धूप कम ज्यादा नमी है फूल तितली खुश्बुयें हैं सब तो है बस तू नहीं है नूर बूँदों में बरसता तू जहाँ ज़न्नत वहीँ है कैसे उसके ऐब देखूं खूबियां ज्यादा कहीं है लौट आ मुझे माफ़ कर दे
ग़ज़ल-ख़फ़ा सारा चमन जला बैठे वो क्यों ख़फ़ा ख़फ़ा बैठे। देर लगी क्यों आने में कब से हम तन्हा बैठे। प्यार से पूछा उसने जो सारा हाल सुना बैठे। गज़ब हुआ उस रात को हम चाँद को चाँद दिखा बैठे। हंगामा क्यों बरपा है जो उसको खुदा बना बैठे। ◆ये भी पढें-इश्क़ के दोहे। प्यार
ग़ज़ल तेरे रुख़सार की रंगत गुलाब देखेंगे छलकता नूर सुबह शाम आब देखेंगे इक यही ख्वाब है दीदार तेरा हो जाये हमें हक है कि हम भी माहताब देखेंगे मैं जिद भी करता हूँ तो एक बार करता हूँ तुम्हे मिलता या हमें आफ़ताब देखेंगे हमारे इश्क को ‘मौलिक’ मजाक ना समझो वो हम ही