November 19, 2016
ग़ज़ल ‘क्या कमी है’। Gazal ‘kya kami hai’
ग़ज़ल
आसमां है ना जमीं है
पूछते हो क्या कमी है
रात भर रोया है कोई
धूप कम ज्यादा नमी है
फूल तितली खुश्बुयें हैं
सब तो है बस तू नहीं है
नूर बूँदों में बरसता
तू जहाँ ज़न्नत वहीँ है
कैसे उसके ऐब देखूं
खूबियां ज्यादा कहीं है
लौट आ मुझे माफ़ कर दे
तेरी सब बातें सहीं हैं
जिस जगह छोड़ी थी तूने
ज़िन्दगी अब भी वहीँ हैं
ग़ज़ल
गर ऐसी बात है तो सोच के बताता हूँ
तू तेज चल के बता रोक के बताता हूँ
हमें ना दिखलाओ डर ये फौजदारी का
ऐसी चिनगारियां मैं फूँक के उड़ाता हूँ
मुझे क्या खौफ है तोपों से इन तमंचो से
बेफिकर हो तेरी आँखो में डूब जाता हूँ
कबूले इश्क तुमसे कर ना सका उम्र तलक
बस यही सोच सोच के मैं दिल जलाता हूँ
4 Comments
mast gajal hai g
जी बहुत-बहुत आभार । रचना ने आपके दिल को छुआ
लिखना सार्थक हुआ । कृपया उड़ती बात के साथ बने रहें ।
कोई सुझाव हों तो अवश्य बतायें । बहुत-बहुत धन्यवाद आपका ।
बहुत ही उम्दा लिखते हैं ॥
? ? ?
आदरणीय राम साहेब,आपके चंद शब्दों से ही आभास हो रहा कि आप स्वयं एक रचनाकार हैं ।
आप जैसे सुधिजन से सराहना मिली ऊर्जा बढ़ी-उत्साह बढ़ा।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद । आपका बहुत बहुत आभार ।
उड़ती बात के साथ बने रहें। आप को नव वर्ष की ढेरों मंगल कामनायें ।