ग़ज़ल ‘क्या कमी है’। Gazal ‘kya kami hai’

Buy Ebook

pexels-photo-30252

ग़ज़ल

आसमां है ना जमीं है
पूछते हो क्या कमी है
रात भर रोया है कोई
धूप कम ज्यादा नमी है
फूल तितली खुश्बुयें हैं
सब तो है बस तू नहीं है
नूर बूँदों में बरसता
तू जहाँ ज़न्नत वहीँ है
कैसे उसके ऐब देखूं
खूबियां ज्यादा कहीं है
लौट आ मुझे माफ़ कर दे
तेरी सब बातें सहीं हैं
जिस जगह छोड़ी थी तूने
ज़िन्दगी अब भी वहीँ हैं 
 

 

 

ग़ज़ल

गर ऐसी बात है तो सोच के बताता हूँ
तू तेज चल के बता रोक के बताता हूँ
हमें ना दिखलाओ डर ये फौजदारी का
ऐसी चिनगारियां मैं फूँक के उड़ाता हूँ
मुझे क्या खौफ है तोपों से इन तमंचो से
बेफिकर हो तेरी आँखो में डूब जाता हूँ
कबूले इश्क तुमसे कर ना सका उम्र तलक
बस यही सोच सोच के मैं दिल जलाता हूँ
 
 
4 Comments

Leave a Reply