रोमांटिक कविता ‘प्रेम दुहाई’। Romantik Kavita ‘Prem Duhai’।

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इसको महज़ चुहल ना समझो यह नेहा की पाती
तुमसे लगन अगन बन गइ है दिन रैना तड़पाती

अंक तुम्हारे जिऊँ मरू मैं स्वांस तेरी बन जाऊं
मेरी आरजू पूरी कर दो तड़पत ना मर जाऊं

सह ना सकूँ बिरह की पीड़ा हुमक रुलाई आवे
किससे कहूँ दर्द मैं दिल कौन समझ में आवे

पर्वत जाय छलांग लगाऊं जाय कुवा में कुंदू
या विषपान करूँ मैं जालिम गले में फंदा ले लूँ

झूम घटाओं सी बरसी हैं रतियाँ रतियाँ अंखियां
पीर बही है नीर कहाँ हैं दुष्ट बिरह की बतियाँ

नैन कटारे कुंद हुए हैं मुंदी मुंदी सी चितवन
तक तक थक गईं सूनी अंखियां भीतर नीरव निर्जन

सन्नाटे की घोर बसाहट किल्लोलें कर जाये
दूर तलक पसरी तन्हाई रोज मखौल उड़ाये

अब तो आजा बैरी बलमा जान कंठ में आई
मौलिक मनमर्जी मत करियो तुमको प्रेम दुहाई

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