मंच संचालन करने के 10 महत्वपूर्ण नियम। Manch Sanchalan karne ke 10 mahatwapurn niyam

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कई बार अतिथिगण निर्धारित समय से अतिरिक्त वक्त अपने वक्तव्य में ले लेते हैं, जिस कारण कार्यक्रम के पूरे क्रम गड़बड़ा जाते हैं। यहाँ संचालक की जबाबदेही बनती है कि अगर ऐसी अवांछनीय स्थिति निर्मित हो तो वक्ता को इशारे में बता दिया जाए या वक्ता के निकट खड़े हो जायें और अपनी भाव भंगिमा सूक्ष्म रूप से ऐसी बना लें कि वक्ता को स्पष्टतया समझ में आ जाये की उनका समय समाप्त हो गया है और उनको अपना वक्तव्य यथाशीघ्र समाप्त कर लेना चाहिए। 

6 –अपनी स्क्रिप्ट को प्रस्तुति के विषयानुसार रोचक बनायें:-

मंच के स्वभाव, कार्यक्रम के उद्देश्य और श्रोताओं की पृष्ठभूमि के अनुसार प्रस्तुतियों के पहले एवम बाद में रोचक पंक्तियाँ, शायरी, छोटे छोटे मगर प्रासंगिक चुटकुले आदि से स्क्रिप्ट को सजायें और अनुकुलता होने पर, समय मिलने पर एवम आपकी मंच पर पकड़ जाने पर उनका प्रयोग करें।

अनुकुलता से मेरा तात्पर्य सभी चीज़ें जैसे दो प्रस्तुतियों के बीच में कितना समय मिलेगा, कार्यक्रम विलम्ब से ना आरम्भ हुआ हो, तकनीकी चीज़ें सही हो (माइक, साउंड, लाइट), दर्शकों से आशा अनुरूप प्रतिसाद मिल रहा हो अन्यथा अपने स्वबोध एवम तत्काल बुद्धि का उपयोग करते हुऐ चुनिंदा चीज़ों का ही प्रयोग करें। 

7-अभ्यास अवश्य करें:-

अगर आप प्रथम बार संचालन करने जा रहे हैं तो मेरा स्पष्ट सुझाव है कि आप अपने कुछ परिचितों या घर वालों के सामने अभ्यास अवश्य करें। यह आपको 100% विश्वाश से भर देगा। कई बार ऐसा भी होता है कि जो हमने स्क्रिप्ट में बोलने का plan किया है, उसको एक फ्लो में बोलने में कुछ दिक्कत सी महसूस हो रही है या हम कहीं पर असहज हो रहे हैं तो उस हिस्से को संशोधित किया जा सकता है। साथ ही आपको निष्पक्ष प्रतिक्रिया भी तुरंत मिल जायेगी कि आप कैसा कर रहे हैं।

जब भी अभ्यास करें, प्रयास करें कि एक मंच जैसा वातावरण हो। आप एक थोड़े से ऊँचे स्थान का चयन जैसे बेड या सोफा या अन्य कोई जगह पर खड़े होकर प्रस्तुति दें और आपके सामने कुछ लोग कुर्सियों पर बैठकर आपको गंभीरता से सुन रहे हों। इसमें एक बात का अवश्य ध्यान रखना है कि जब आप प्रस्तुती दे रहे हों तो भले ही आप से गलतियां हो रही हों, ना तो आप रुकें और ना ही आपके परिचित आप को रोकें-टोकें वल्कि प्रयास ये करें कि आप स्थिति को ऐसे संभालें जैसे दर्शकों को पता ही ना चला हो।

एक और महत्वपूर्ण अभ्यास ‘शुरुआत कैसे करें ‘ इस पर थोड़ा ज्यादा जोर दें। क्योंकि शुरू के 15 मिनिट्स ही महत्वपूर्ण होते हैं। इसको ice braking करना बोलते हैं। अच्छे-अच्छों को शुरुआत में घबराहट हो जाती है। यह चरण आसानी से हो जाता है तो पूरा संचालन बेहतर होता चला जाता है। आप विश्वाश से भर जाते हैं। 

8 –कार्यक्रम का उपलक्ष्य एवम उद्देश्य के अनुसार संचालन-

किसी कार्यक्रम के संचालन से पहले कुछ बातेँ जान लेना आवश्यक है जैसे
कार्यक्रम किस प्रकार का है। प्रत्येक कार्यक्रम की भाव भंगिमा (body language) अलग-अलग होगी। जैसे कि अगर एक कॉलेज के वार्षिक उत्सव का कार्यक्रम है तो आपको थोड़ा लड़कपन और थोड़ी मस्ती का रंग अपनाना पड़ेगा। अगर किसी प्रतियोगिता का संचालन है तो थोड़ी गंभीरता अपनानी पड़ेगी।

इसी प्रकार अगर किसी कवि सम्मेलन का संचालन है तो आपको थोड़ा शायराना और थोड़ा हास्य का पुट अपनाना पड़ेगा। किसी खेल-कूद के संचालन में किसी खिलाड़ी की तरह चलायमान रहना पड़ेगा और अगर किसी सांस्कृतिक या सांगीतिक कार्यक्रम का संचालन है तो आपको एक ऊर्जामयी कलाकार की तरह नज़र आना पड़ेगा।

साथ ही अन्य बातें जैसे आपके श्रोतागण किस पृष्ठभूमि के हैं, उनका आनुपातिक शैक्षणिक स्तर क्या रहेगा, अतिथिगण किस स्तर के हैं उसी अनुसार आपको अपनी स्क्रिप्ट की सामग्री एवम स्क्रिप्ट की भाषा आदि का प्रयोग करना पड़ेगा।

आप कम प्रबुद्ध तृतीय वर्ग के श्रोताओं को हरिवंश राय बच्चन या शेक्सपियर की रचनायें नहीं परोस सकते। या उच्च वर्ग के लोगों को कम स्तरीय शायरी या पंच नहीं सुना सकते। मंच के मिज़ाज़ को भांपना और उसी अनुसार संचालन करना एक अच्छे एंकर की सबसे प्राथमिक विशेषता है। 

9 –कुछ शायरी, पंक्तियाँ एवं छोटे प्रसंग याद कर लें:-

मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि सदा ही वैसा नहीं होता जो हमने सोचा होता है।
ज्यादातर कार्यक्रमों में सुनियोजित स्थिति गड़बड़ा जाती है। कोई तकनीकी समस्या हो गई जैसे लाइट की व्यवस्था बाधित हो गयी या कार्यक्रम एक घंटे विलम्ब से आरम्भ हुआ (शाम 8 बजे का कार्यक्रम 9 बजे शुरू हुआ) अगर महिलाओं पुरुषों का सम्मिलित जन समूह है तो आपको समापन 12 बजे तक ही करना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में आपके पास समय कम है तो आपको चतुराई से समय चुराकर प्रभावी पंचेज़ लगाने पड़ेंगे।

कभी कभी मुख्य अतिथि या कार्यक्रम अध्यक्ष समय से नहीं आ पाते हैं तो जब उनका कार्यक्रम के मध्य में आना होता है तो कार्यक्रम की दिशा तुरंत बदलकर स्वागत क्रम, उनके भाषण क्रम आदि पुनः व्यवस्थित करने पड़ते हैं। या फिर कोई अनपेक्षित अतिथि कार्यक्रम में पधार जाते हैं तो उनके लिए कुछ औपचारिकताएं करनी पड़ जाती हैं ऐसे समय में स्क्रिप्ट अनुसार नहीं चला जाता बल्कि तात्कालिक बुद्धि का प्रयोग करके समयानुकूल सञ्चालन करना पड़ता है।

मेरा कहने का तात्पर्य है इस प्रकार की कई अनपेक्षित स्थितियों का निर्माण अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हो जाता है कि आपको अपनी तात्कालिक बुद्धि से और चतुराई से उस क्रम या चुनौती को संभालना होता है। यहीं से आपकी सहज यात्रा-कुशल यात्रा आरम्भ होती है। यंही से आपका सकारात्मक प्रभाव श्रोताओं और आयोजकों पर पड़ता है। अगर आपको कई पंक्तियाँ, शायरी, प्रसंग और संदर्भित पंचेज़ याद रहते हैं तो आपकी जीत निश्चित है। 

10 –आंकड़ो और रोचक प्रसंगों का उपयोग करें-

यह आपने कर लिया तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जायेगी। चीज़ों पर नज़र रखें जैसे आप गोरखपुर में सञ्चालन कर रहे हैं तो आप कह सकते हैं ‘मेरी स्वयं की अनुभूति की बात करूँ तो आज के इस मंच से एक नूर एक ओज का प्रवाह हो रहा है और क्यों ना हो आखिर गोरखपुर की 18 लाख 22 हज़ार 432 जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाला विद्वत एवम प्रबुद्ध जन समूह आज इस प्रेक्षाग्रह में मौजूद है, एक बार आप सब अपने लिए ज़ोरदार तालियाँ बजा सकते हैं।’

रोचक प्रसंग जैसे आज का दिन इसलिए भी बहुत ही ख़ास है क्योंकि आज के दिन हमारी संस्था के अध्यक्ष या मुख्य अतिथि या कार्यक्रम के अध्यक्ष का जन्मदिन या शादी की वर्षगाँठ है। या फिर आज ही के दिन हमारे रणबांकुरे अमर शहीद भगतसिंह राजगुरु आदि ने हँसते-हँसते देश पर अपनी जान न्योछावर कर दी थी हम ऐसे अमर शहीदों को कोटि-कोटि नमन करते हैं।

या सचमुच बच्चों की इस प्रस्तुति ने चेहरे को मुस्कराहट से भर दिया है, जीवन में सदा ही मुस्कराते रहना चाहिए क्योंकि मुस्कराने में हमारे चेहरे की 14 मांसपेशियों का उपयोग होता है और क्रोध करने में 72 मासपेशियों का उपयोग होता है। इस प्रकार के कई आंकड़ों का स्थिति अनुसार प्रयोग करने से मंच पर आपका बहुत प्रभाव पड़ेगा। 

 

मैंने ऐसा गधा कभी नहीं देखा जो इंसान की तरह बातें करता हो, लेकिन ऐसे अनेक मनुष्य देखे हैं जो गधों की तरह बातें करते हैं।’
-Henrick heni 

यह गलतियां बिलकुल ना करें..

-लोकल भाषा का प्रयोग बिलकुल ना करें और अपने आदत में आये जुमले जैसे अरे यार, अबे, काय, अरे चुप रहो, थोड़ा शांत भी तो बैठो या अन्य का प्रयोग भूलकर भी ना करें।

-कभी भी ना कहें कि आप पहली बार संचालन कर रहे हैं या आपको तैयारी का अवसर नहीं मिला या गलतियां हो जायें तो क्षमा करें या मुझ जैसे आदमी को आज यह बड़ा अवसर मिला, मैं तो इस लायक खुद को मानता ही नहीं।

-किसी भी दोस्त परिचित को उसके लोकल नामों से या उपनामों से ना पुकारें सदा औपचारिक रहें और औपचारिक भाषा का उपयोग करें नहीं तो आपकी भी हूटिंग हो सकती है।

-याद रखें कि आप अगर क़ुछ भूल गये हैं तो हड़बड़ायें नहीं तुरंत ही कोई दूसरा पंच या बात कह सकते हैं। आपने स्क्रिप्ट में कितना कुछ भी लिखा हो उससे किसी को कोई मतलब नहीं। आपने जो कहा वही परिपूर्ण है उसी को लोग आपकी प्रस्तुती मानते हैं।

-किसी भी अन्य स्थापित संचालक की नक़ल करने का प्रयास ना करें । सबकी अपनी-अपनी शैली होती है जो की तासीर से आती है-मिज़ाज़ और व्यक्तित्व से आती है जो कि श्रोताओं के लिए एक शैली रूप में परिवर्तित हो जाती है।

-स्टेज के सिद्धांत के अनुसार ही अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करें । कम महत्व के अतिथि को सबसे पहले और सबसे ज्यादा महत्व के अतिथि को सबसे बाद में मंचासीन करायें जिससे सबसे महत्वपूर्ण अतिथि को अन्य कम महत्वपूर्ण लोगों का इंतज़ार ना करना पड़े।

-अपने हुनर को ना छिपायें, अगर आप गाते हैं तो गायें अगर आप नाचते हैं तो थोड़े बहुत ठुमके अवश्य लगाएं अगर आप कवि हैं तो एक दो कवितायें अवश्य सुनाएँ अगर आप मिमिक्री करते हैं तो बीच-बीच में पंच अवश्य लगायें। यही आपको अन्य से अलग करेगी। आपकी शैली बनेगी।

अगर इस बाबत कोई प्रतिक्रिया, सुझाव या जिज्ञासा हो तो अवश्य सूचित करें।

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