भगवान बाहुबली पर कविता। Bhagwaan bahubali Hindi Poem

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सभी जात विरोधी जीव आपस में परम प्रीति को प्राप्त हो गये हैं। आकाश मार्ग में विद्याधर के विमान रुक जाते हैं, तब वे नीचे आकर बाहुबली महामुनि की भक्ति करके अतिशय पुण्य कमा लेते हैं। कभी-कभी स्वर्ग में देवों के आसन कंपने लगते हैं।

इस तरह अपनी आत्मा का ध्यान करते हुए उन महामुनि को एक वर्ष पूर्ण हो चुका था, किन्तु उनके दुधर्ष तप अनुसार उनको केवलज्ञान की प्राप्ति हो जानी थी जो कि नहीं हो रही थी।

इस का कारण जानने के लिये सम्राट भरत सर्वज्ञाता भगवान ऋषभदेव जी की शरण में गये। भगवान ऋषभ देव जी ने उनकी निर्मूल शंका ‘भरत को मुझसे क्लेश हो गया’ के बारे में भरत जी को बताया।

यद्दपि जैन धर्म के कुछ पुराणों जैसे कि महापुराण आदि में स्पष्ट लिखा है कि भगवान बाहुबली को कोई शल्य नहीं थी। मात्र इतना विकल्प अवश्य था कि ‘‘भरत को मेरे द्वारा संक्लेश हो गया है, सो भरत के पूजा करते ही वह दूर हो गया।”

कुछ अन्य ग्रंथों में इस प्रकार का वर्णन भी है कि ‘आप जाइये, कहाँ जायेंगे, भरत की भूमि पर ही तो रहेंगे’ ऐसे मंत्रियों के द्वारा व्यंगपूर्ण शब्द के कहे जाने पर बाहुबली कुछ क्षुब्ध से हुए और मान कषाय को धारण करते हुए चले गये तथा दीक्षा ले ली। उस समय से लेकर उन के मन में यही शल्य लगी हुई थी कि ‘‘मैं भरत की भूमि में खड़ा हूँ’ अत: उन्हें केवलज्ञान नहीं हो रहा था।

तब भरत जी जाकर उनकी पूजा करते हैं, और उन्हें संबोधन देते हैं कि ‘प्रभु यह कैसा चिंतन है, इस धरा पर अनादि काल से ही सहस्त्रों चक्रवर्ती राजा हुए हैं जिन्होंने अपनी तात्कालिक मनः अवस्था में अपने आपको इस संसार का स्वामी समझा किन्तु आज वो सब काल कवलित हो गये और यह धरा वैसे की वैसे ही विद्यमान है, इस धरा का ना तो कोई स्वामी है और ना ही हो सकता है। समस्त धरती की अपनी एक निज सत्ता है।’

तब तत्क्षण ही बाहुबली को केवलज्ञान प्रगट हो जाता है। बाहुबली के मन में कभी-कभी यह विकल्प हो जाया करता था कि ‘‘भरत को मुझसे क्लेश हो गया है।’’ एक और प्रचलित अवधारणा है कि बाहुबली के मन में ये शल्य थी कि ‘मैं भरत की भूमि पर ही तप कर रहा हूँ और मैंने भरत से इसकी अनुमति नहीं ली है।’

बाहुबली भगवान अपने दिव्य उपदेश से असंख्य भव्य जीवों को मोक्षमार्ग में लगाते हैं अनंतर श्री ऋषभदेव के पहले ही शेष कर्मों का नाश कर अक्षय, अनंत, अविनाशी मोक्षपद को प्राप्त कर लेते हैं।

ये बाहुबली इस युग के चौबीस कामदेवों में प्रथम कामदेव हुए हैं और सर्वप्रथम ही मोक्ष गये हैं तथा इनके एक वर्ष के ध्यान की विशेषता भी अपने आप में विलक्षण ही रही है।

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