भगवान बाहुबली पर कविता। Bhagwaan bahubali Hindi Poem

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ऐसे ही मल्ल युद्ध में भी बाहुबली भरत को उठा लेते हैं। पुन: सोचते हैं बड़े भाई का अविनय करना उचित नहीं है अत: वे उन्हें जमीन पर न पटक कर अपने वंधे पर बिठा लेते हैं।

उस समय बाहुबली के पक्ष में जयकारे की ध्वनि होने लगती है और भरत के पक्ष में राजा लोग मस्तक नीचा कर लेते हैं। इधर बाहुबली भरत को अपने वंधे से उतारकर उच्चासन पर बिठा देते हैं।

उस समय भरत अपमान से संतप्त हो उठते हैं और अपना चक्ररत्न बाहुबली के ऊपर चला देते हैं। तब सभी जनता के मुख से हाहाकार शब्द निकलने लगते हैं।

बड़े-बड़े राजागण कह उठते हैं-राजन्! बस हो, बस हो, आपका यह अतिसाहस बस हो। उधर चक्ररत्न बाहुबली की तीन प्रदक्षिणा देकर उन्हीं के पास खड़ा रह जाता है। 

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इस घटना से बाहुबली का हृदय विरक्त हो उठता है। अहो! मेरे बड़े भाई भरत ने यह क्या किया ? जब इन्हें मालूम है कि चक्ररत्न अपने स्वजनों का घात नहीं कर सकता, तब पुन: क्रोध के आवेश में आकर यह लोकनिंद्य कार्य कैसे कर डाला ?

बाहुबली कहते हैं-हे भाई! जिस नश्वर राज्य के लिए आपने यह साहस किया है वह आप का ही रहे, मैंने जो भी अपराध किया है उसे क्षमा करो, अब मैं जैनेश्वरी दीक्षा लेना चाहता हूँ।

भरत का हृदय पानी-पानी हो जाता है, वह पश्चात्ताप करते हुए बार-बार बाहुबली को रोकना चाहते हैं परन्तु बाहुबली अपने बड़े पुत्र महाबली को राज्य देकर वन में जाकर नग्न दिगम्बर दीक्षा लेकर एक वर्ष के उपवास का नियम लेकर एक ही जगह निश्चल खड़े हो जाते हैं।

इधर चक्रवर्ती का चक्ररत्न अयोध्या में प्रवेश करता है, भरत का साम्राज्य पद पर अभिषेक होता है। वह चक्रवर्ती इस छह खण्ड पृथ्वी के एकछत्र स्वामी बन जाते हैं। 

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इधर बाहुबली योग साधना में लीन हैं। सर्पों ने उनके चरणों के निकट वामियाँ बना ली हैं। लताएँ चरणों के आश्रय से उन्हें वेष्टित करती हुई कंधे पर जा पहुँची हैं। बासंती बेल के सफेद-सफेद पुष्प उनके ऊपर पड़ते हुए अतिशय सुन्दर दिख रहे हैं। बाहुबली के ध्यान के प्रभाव से उस वन के क्रूर हिंसक सिंह, व्याघ्र आदि अपनी क्रूरता छोड़कर हिरण, गाय, मोर, नेवला आदि के साथ-साथ घास चरते हैं और क्रीड़ा करते हैं।

सर्प भक्ति में विभोर हो नाच रहे हैं। उसी समय मयूर भी अपने पंख फैला कर नाचते हैं। सिंहनी हरिणी के बच्चे को दूध पिलाती है तो गाय शेरनी के बच्चे को दूध पिलाती है।

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