देवी गीत । भगवती स्तुति । Devi geet। Bhagwati stuti

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godessbhavanishivaji

देवी वंदना 

सर्वेश्वरी जग्दीश्वरी तेरी शरण अज आये हैं
मन शांत सरल किया है माँ कुविचार भी तज आये हैं

आँखे विव्हल भक्ति प्रबल मेरा रोम रोम प्रसन्न है
नयनाभिराम है छवि तेरी लख पाये जो हम धन्य हैं

श्रीफल सुपारी लौंग चंदन पुष्प केशर लाये हैं
शुभ दीप ज्योति है उज्जवला हम आरती को आये हैं

झिलमिल चुनर श्रॄंगार कर सुख रुप धर आसन्न हैं
करुणामयी अरुणिम प्रभा युत रुप लख के प्रसन्न हैं

चूड़ी बसंती हारमणि कुंडल तनिक इतराये हैं
रोली दमकती भाल पर ज्यों कोटि रवि मुस्काये हैं

त्रिशूल के इक शूल से तलवार के इक वार से
कर दो हनन जामन मरण मुक्ति मिले संसार से

इस लोक में अहिलोक में पर लोक में भी सुख रहे
तेरी कृपा जग्दम्बिका सब पर रहे युग युग रहे

हुंकार मय मौलिक प्रलय अंगार की बरसात दो
सिंहों पे चढ़ कर आओ माँ दुष्टों का फ़िर संहार हो 

देवी वंदना 

मेरी मैया शारदे माँ मुझे अपना बना लेना
तू ममता का समंदर है मुझे कतरा बना लेना

सुरीली मुग्ध सरिताएं मेरे उर में बहा दे माँ
ह्रदय में बाँसुरी की धुन ज़रा संगीत भर दे माँ
मैं बन जाऊँ मधुर मिश्री मुझे सुर पांचवां देना

उडू अम्बर में चिड़ियों सा चहक जाऊँ लहक जाऊँ
खिलूँ गुल सा चमन में और खुशबू सा महक जाऊँ
कुहासे सारे संशय के मेरे मन से हटा देना

रहें मौलिक, प्रपंचों से विमुख हों कर जीयें जीवन
छदमता हों ना अंतर में कलुषता हो ना मेरे मन
मेरे अंतस के सारे तम मेरी मैया मिटा देना

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