पासवर्ड : एक ऐसी कहानी जो सावधान करती है।

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‘ओके मैं भी पहुंचाता हूँ।’

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प्रमोद अपने दोस्त को फोन लगा कर कहता है ‘ तूँ मुझे वियर-मियर के साथ पुराने अड्डे पर मिल।

प्रशान्त बेसब्री से शौर्या को आवाज़ देने ही वाला था कि पुलिस आकर प्रमोद को पकड़ लेती है।

प्रमोद इनोसेंट होने का नाटक करता है, ‘सर मैंने क्या किया है।

एक पुलिस वाले ने उसे खींचकर एक थप्पड़ लगाया और कहा कि ‘बस तू थोड़ा सब्र कर, तुझे सब समझ आ जाएगा। ‘
इतने में सुमन और प्रशान्त भी पहुँच जाते हैं।

सुमन- प्रशान्त को देखकर प्रमोद घबरा जाता है। प्रशान्त बिना कुछ कहे ही उसे एक जोरदार थप्पड़ मारता है।

सुमन की आवाज़ लगाने पर शौर्या ताला खोलकर बाहर आती है और रोती हुई माँ की बांहों को जकड़ लेती है।

प्रशान्त शौर्या को गोद में उठा लेता है। और सुमन को भी गले लगाकर कहता है ‘सुमन ये सब तुम्हारी समझदारी व मेहनत का ही परिणाम है। साथ में शौर्या की भी तारीफ़ है । क्योंकि इसने अपनी माँ की बातों को अपने दिमाग से फॉलो किया।’

प्रशान्त इंस्पेक्टर की ओर देखता है और दाँत पीसते हुये कहता है ‘सर, जब तक ये अपना अपराध स्वीकार न कर ले कि मेरी बेटी के साथ क्या करने वाला था तब तक इस की हड्डी-पसली का चूरमा बनाते रहना।’

पुलिस प्रमोद को थाने ले जाती है और बाद में उसे जेल भेज दिया जाता है।

छब्बीस जनवरी पर सुमन के संस्कार देने के लिये और शौर्या को उसकी समझदारी के लिए एसपी द्वारा स्कूल में सम्मानित किया जाता है।

लेखिका – रिंकी जैन

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