कहानी-नहरिया , किसान पर कहानी, भारतीय किसान पर कहानी
अगर वह नहरिया के लिये खेतों में से जगह देता तो लगातार बहती नहरिया से उसके दो खेतों में अतिरिक्त नमी बनी रहती और उसके दो खेत बेकार हो जाते जिनमें कोई भी फसल नहीँ उगाई जा सकती। भुल्ले ने दृढ़ता से नहरिया के लिये मना कर दिया और रघुनाथ जी के सहारे सब छोड़ दिया।
माघ की शीत लहर वाली कड़कड़ाती ठंड। रात तक़रीबन 11 बजे का समय।
पूरा गाँव लगभग सुनसान। शंकर जी वाले बगीचे में मंदिर के पीछे पाँच आदमी कुछ बातचीत करते हुये। अँधेरे के साम्राज्य में उनकी पहचान करना कठिन हो रहा था।
‘आप कहें तो उसे जान से मार दें..’ मनीराम की जानी पहचानी आवाज़ उभरी।
‘नहीँ!! उसको दंड तो देना है लेकिन मृत्यु दंड नहीँ..’ ठाकुर साब की धीमी आवाज़ सुनाई दी। ‘मुझे उसे सबक देना है कि ठाकुर राज़वीर सिंघ के सामने उसकी औकात क्या है।’
‘फिर उसके हाथ पैर तोड़ देते हैं और उसकी झोपडी में आग लगा देते हैं।’ मनीराम की उतावली आवाज़ सुनाई दी।
‘ऐसा करो उसकी खड़ी फसल को जानवर छोड़ कर चौपट कर दो और पानी निकालने का रहट उखाड़ कर बैल समेत गायब कर दो, इतनी सजा उसके लिये पर्याप्त है। ना तो वह दूसरे रहट खरीद पायेगा ना ही बैल, क्योंकि खरीदने के लिये फसल बेचना पड़ती है और फसल उसकी होगी नहीँ।’ ठाकुर साब का दाँत किटकिटाता स्वर उभरा।
‘आप की जैसी मर्जी।’ निराश मनीराम ने कहा और सब वहाँ से चले गये।
उसी रात भुल्ले के खेत को तहस नहस कर दिया गया एवम पूरे रहट को उखाड़ दिया गया। बैलों को चुरा कर गायब कर दिया गया साथ ही खलिहान में रखे मवेशियों के चारे को भी जला दिया गया।
अगली सुबह भुल्ले के लिये कयामत ले के आई। उसके खेत पहुँचने से पहले किसी ने उसे बुरी ख़बर दे दी कि तुम्हारे खेत में बवंडर आया है। भुल्ले और उसका परिवार आनन फानन खेतों पर पहुँचा और वहाँ आई तबाही का मंजर देख कर रो पड़ा। भुल्ले के पिता इस सदमें को सह ना सके और उसी दिन उनका देहांत हो गया। भुल्ले के पूरे घर में मातम छा गया। भुल्ले स्वयं कई दिनों तक गुमसुम रहा। बातचीत करना बंद ही कर दिया।
उधर इस घटना के एक महीने बाद ठाकुर राज वीर सिंघ की इकलौती बेटी कुसुम जो कि हैदराबाद में ब्याही गई थी, अपने माँ बाप से मिलने अपने दो बच्चों सूरज और पूजा के साथ गाँव आई। एक बार ठाकुर के नौकर मंटू के साथ बच्चे खेत घूमकर लौट रहे थे तो जंगल की तरफ़ से अचानक आये एक चीते ने बच्चों पर हमला कर दिया। बच्चों की तेज चीखें सुनकर अपने खेत पर काम कर रहा भुल्ले दौड़कर आया और ठाकुर के नाती नातिन को बचाने के लिये निहत्था ही चीते से भिड़ गया।
प्रारम्भिक सम्वाद बहुत अच्छे थे।
किन्तु अंत की ओर बढ़ते बढ़ते शायद कहानी के लम्बी होने की चिंता कर आप खुद ही संयम खो बैठे।
और भुल्ले की भलमनसाहत को 1 पेरेग्राफ में ही निपटा दिया।
ई तो सरासर अन्याय हैं माई बाप।
?
जी अवश्य त्रुटि हो सकती है। सच कहूँ तो कहानियाँ लिखना उतना सहज नही मेरे लिये। आपने आगाह किया। आपका बहुत बहुत आभार।
अमित जी कहानी अच्छी है और गाँव के भाई चारे का अच्छा चित्र प्रस्तुत करती है | आपका प्रयास सराहनीय है | सस्नेह ———
आपका ह्र्दयतल से बहुत बहुत आभार आदरणीया। आपके आशीर्वचन ऊर्जा से भर देते हैं। अतुल्य धन्यवाद। पुनः पधारें