देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता । Deshbhakti par kavita

Buy Ebook

देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता – यह वतनपरस्ती पर कविता महज़ एक कविता नहीं है, एक आक्रोश भरा नाद है। अपने देश की तरक़्क़ी में रोड़ा अटकाने वालों के ऊपर तेज़ाबी हुँकार बरसाती यह रचना देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता आपकी नसों में रक्तिम उबाल ला देगी ऐसा मेरा विश्वास है। यह देशभक्ति की कविता आपके अंदर देशभक्ति की प्रखर भावना लाये ऐसी कामना करता हूँ। 

देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता, देशभक्ति कविता, देश भक्ति कविता इन हिंदी, देश के हालात पर कविता इन हिंदी, भारत के हालात पर कविता इन हिंदी, हिंदुस्तान के हालात पर कविता इन हिंदी, india ki halat par kavita in hindi , bharat ki vartman haalat par kavita in hindi, mera bharat par kavita in hindi, bharat ki vartman sthiti par kavita in hindi, भारत पर कविता इन हिंदी, vartaman bharat ki tasveer par kavita in hindi, aaj ka bharat par kavita in hindi, mera bharat par kavita in hindi, bharat desh ki rajnaitik sthithi par kavita in hindi, bharatiya rajnaitik paridrishy par kavita in hindi, deshbhakti par kavita in hindi, jago matdata jago par kavita in hindi, matdata jagrukta par kavita in hindi, वीर रस की कविता, वीररस की हिंदी कविता, वीर रस की कविता इन हिंदी, veer ras ki kavita in hindi, deshbhakti par poem in hindi, indian poltical situation par poem in hindi, poem on indian poltical situation in hindi, deshbhakti poetry in hindi, deshbhakti par kavitayen in hindi, deshbhakti kavitayen in hindi, bharat par kavita, वतनपरस्ती पर कविता, वतनपरस्ती की कविता, भ्रष्टाचार पर कविता, भारतीय सियासत पर कविता, गन्दी राजनीति लर कविता, भारतीय राजनीति पर कविता, भ्रष्ट नेताओं पर कविता, Patriotic poem in hindi, Patriotic kavita in hindi, patriotic poetry in hindi, देशभक्ति पर एक ओजमयी कविता

देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता

नव प्रभात की नई रोशनी, में इक दीप जलाया हूँ
शाम तलक कुछ फुंकारों से, लावा इसे बनाया हूँ।

फफक उठे हैं-दहक उठे हैं, लाल फुलङ्गे सीने में
हमको प्यारे रास ना आया, ऐसे घुट-घुट जीने में।

कलम चली है-कलम चलेगी, हलके में मत लेना जी
खुल के जब तलवार चलेगी, फिर इलज़ाम ना देना जी।

ये भी पढ़े: नोटबंदी पर कविता 

ये भी पढ़े: योगी आदित्यनाथ पर कविता

कब तक यूँ अपनी चादर में, मुफ़लिस पैर सिकोड़ेगा
कब तक यूँ तपती गर्मी में, भारत पत्थर तोड़ेगा।

कब तक घुट-घुट कर बेबस हो, युवा देश का मचलेगा
कब तक ख्वाबों की लाशें को, ढो-ढो कर के कलपेगा।

कब तक गंगा मैली होंगीं कब तक यमुना सूखेंगीं
कब तक नालंदा की गलियां बेनूरी पर रुठेंगीं।

धरती अम्बर घाट नदी सब रुष्ट, हिमालय रोता है
मक्कारी को मंडित कर दें, हमसे ना ये होता है।

एक भयंकर गलती ना करते, भगवान बना लेते
सुबह शाम गाते यश गाथा, गीता तुम्हें बना लेते।

देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता, देशभक्ति कविता, देश भक्ति कविता इन हिंदी, देश के हालात पर कविता इन हिंदी, भारत के हालात पर कविता इन हिंदी, हिंदुस्तान के हालात पर कविता इन हिंदी, india ki halat par kavita in hindi , bharat ki vartman haalat par kavita in hindi, mera bharat par kavita in hindi, bharat ki vartman sthiti par kavita in hindi, भारत पर कविता इन हिंदी, vartaman bharat ki tasveer par kavita in hindi, aaj ka bharat par kavita in hindi, mera bharat par kavita in hindi, bharat desh ki rajnaitik sthithi par kavita in hindi, bharatiya rajnaitik paridrishy par kavita in hindi, deshbhakti par kavita in hindi, jago matdata jago par kavita in hindi, matdata jagrukta par kavita in hindi, वीर रस की कविता, वीररस की हिंदी कविता, वीर रस की कविता इन हिंदी, veer ras ki kavita in hindi, deshbhakti par poem in hindi, indian poltical situation par poem in hindi, poem on indian poltical situation in hindi, deshbhakti poetry in hindi, deshbhakti par kavitayen in hindi, deshbhakti kavitayen in hindi, bharat par kavita, वतनपरस्ती पर कविता, वतनपरस्ती की कविता, भ्रष्टाचार पर कविता, भारतीय सियासत पर कविता, गन्दी राजनीति लर कविता, भारतीय राजनीति पर कविता, भ्रष्ट नेताओं पर कविता, Patriotic poem in hindi, Patriotic kavita in hindi, patriotic poetry in hindi, देशभक्ति पर एक ओजमयी कविता,

ये भी पढें: नोटबंदी के विरुद्ध भारत बंद पर कविता 

ये भी पढें: फिल्म पद्मावती विवाद पर कविता

चंद परस्तों के हाथों से, डोर देश की ले लेते
आज़ादी के दिन ही इनसे, भी आज़ादी दे देते।

एक बार गर बेईमानों से, पीछा आप छुड़ा देते
एक बार इन नाफरमानों को, औकात दिखा देते।

तो दशकों यूँ देश ना लुटता, मोती चुगते हंस सभी
रावण ना होते यूँ पैदा, नज़र ना आता कंस कभी।

सम्भु वाला एक हलाहल, प्याला इन्हें पिला देते
वक्त बहुत था शीश दम्भ का, काट तुंग लटका देते।

लौह पुरुष जी यही लुहारी, अंतिम काम बना देते
सारा देश अयोध्या होता, तुमको राम बना लेते।

दंश बड़ा दुखदाई है ये, दिल पीड़ा से रोता है
मक्कारी को मंडित कर दें, हमसे ना ये होता है।

माना कि यह देश भरा है, मक्कारों के सूबों से
लेकिन हम अंजान नहीं है, कुत्सित इन मंसूबों से।

हम तो बस उलझे रहते हैं, अपनी रोज़ी रोटी में
लेकिन तुमको मज़ा आ रहा, मजलूमों की बोटी में।

बहुत हो गया छाती पर यूँ, मूंग नहीं दलने देंगें
पाक हिमालय की छाती पर, छाले ना पलने देंगें।

हमने अपने मौलिक सपने, देश की खातिर बेचे हैं
लहू सींचकर चमन खिलाया, प्राण हलक से खींचे हैं।

हमने सत्ता-धीशों के, पैरों से धरती छीनी हैं
कितने भागे खेत छोड़, कितनों ने लाशें बीनी हैं।

तुमने दशकों लूटा है, अब शांत रहो ये नक्कालो
अच्छा करने वालों की, राहों में अड़चन ना डालो।

वरना फिर अंजाम तुम्हारा, होगा क्या कुछ सोचा है
मक्कारी को मंडित कर दें, हमसे ना ये होता है।

यह आर्टिकल देशभक्ति पर एक बहुत ही ओजमयी कविता आपको कैसा लगा। प्रतिक्रिया अवश्य दें। 

20 Comments

Leave a Reply