कहानी लॉक डाउन – लॉक डाउन में एक घर की कहानी ऐसी भी

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और इतना ही नहीं, नीरज की पहल से ग्रुप में पाँच लाख रुपये एकत्रित हुए हैं उसमें से एक लाख रुपये से अशक्त और निसहाय लोगों की भोजन व्यवस्था की गई है, और बाकी धनराशि मुख्यमंत्री कोष में जमा की जायेगी।

और साथ ही कुछ और धनराशि इकट्ठा करके हमारे जो सहधर्मी बंधु आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनकी भी मदद करने का भी निर्णय लिया गया है ताकि दिया तले अंधेरा ना रहे। इसका श्रेय भी नीरज जी को ही जाता है।

वैसे देखा जाए, यदि सभी लोग अपनी अपनी जिम्मेदारियां ठीक से समझे तो इन इक्कीस दिनों में ही कोरोना वायरस पर काबू पा लिया जाएगा परंतु कुछ ख़ास वर्ग के अंधविश्वासी धर्मगुरुओं को कौन समझाये कि खुद भी मरेंगे साथ में लाखों को भी लेकर जाएंगे। मूर्खता की भी हद है यार।

नीरज की तारीफ़ सुनकर तान्या का उदास चेहरा गुलाब की तरह खिल जाता है, और कुछ क्षण के लिए तान्या आश्चर्य में भी पड़ जाती है! उसे नहीं पता था कि नीरज सामाजिक जिम्मेदारियों को लेकर इतना जागरूक है। ‘राधिका तूने सही कहा, यार मेरा पति हीरो की भूमिका में है और मुझे पता ही नहीं, यदि सभी घर के कामों में लग जायेंगे तो कोरोना फाइटर कहाँ से आयेंगे। मुझे गर्व है नीरज पर।’

राधिका ने कहा ‘हाँ, और साथ ही हम महिलाओं का भी कुछ कर्तव्य बनता है। मैंने सुना है कि दवा के साथ दुआ भी जरूरी होती है क्यों ना हम अपने ग्रुप में एक निश्चित टाइम पर अपने-अपने घर पर बैठकर भगवान से प्रार्थना करें कि देश इस ‘कोरोना आपदा’ से जल्दी से जल्दी बाहर आ आए। और मुझे पूरा विश्वास है कि हमारी प्रार्थनाएँ, सकारात्मक सोच, और सोशल डिस्टेनसिंग का पालन कोरोना जैसी छुआछूत की बीमारी से हम सब को बचा सकती है। प्रभु सब ठीक करें।

कहानी लॉक डाउन आपको कैसी लगी। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। धन्यवाद

– लेखिका रिंकी जैन

 

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