कहानी अपने लोग – लॉकडाउन की एक दर्दनाक तस्वीर

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‘रजनी, मुझे ऐसा कह कर शर्मिंदा मत करो और भी किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो निसंकोच कहना।’

‘जी भाभी।’

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‘सुरभि, ना जाने कितनी रजनी, कितने सुमेर होंगे जो अपनी भूख से लड़ रहे होंगे और शर्मिंदगी की वजह से किसी के सामने हाथ भी नहीं फैला पा रहे होंगे। इस घटना ने मेरी आंखें खोल दी हैं।’ सूरज ने नम आवाज़ में कहा।

‘मैं समाज में संपन्न होने के साथ-साथ सामाजिक संस्थाओं में उच्च पदों पर बैठा हूँ और यह हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी है कि हम कमज़ोर परिस्थिति के परिवारों की सहायता करके अपना कर्तव्य निभायें।’ सूरज का स्वर दृढ़ता से भरा हुआ था।

और सूरज अपनी सामाजिक संस्था के विशाल ह्रदय रखने वाले वरिष्ठों और उत्साही सहयोगियों के साथ चल पड़ता है मानवता के कार्यों के लिए। वह लोगों से बात करके ऐसे परिवारों की एक लिस्ट तैयार करता है जिसमें सबसे पहले कमज़ोर परिस्थिति के नाते रिश्तेदार, फिर पड़ोसी, फिर साधर्मी बंधु इसके बाद अन्य ज़रूरत मंद लोग शामिल हैं।

शायद यही सच्चा धर्म है। शायद यही पूजा है। शायद यही जप तप है।

– लेखिका रिंकी जैन

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