कहानी अपने लोग – लॉकडाउन की एक दर्दनाक तस्वीर

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सुरभि को अपने घर देखकर रजनी आश्चर्य से ‘अरे भाभी आप, आइए।’

सुरभि ने रजनी से कहा ‘मैं बस तुमसे ही मिलने आई थी, कैसी हो।’

‘रजनी मुस्कराते हुये कहती है ‘सब ठीक है भाभी। आप चिंता न करें।’

‘किसी चीज की कोई आवश्यकता हो तो मुझे बताओ।’ सुरभि ने बड़ी ही आत्मीयता के साथ रजनी से कहा।

‘धन्यवाद भाभी, लेकिन सब ठीक है।’ रजनी सहज दिखने की कोशिश करती हुई स्थिति को छुपाने का पूरा प्रयास करती है।

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‘रजनी, तुम मुझे अपना ही समझो और सच सच बताओ, इस आपदा के समय हर किसी की स्थिति एक जैसी नहीं है। अच्छा बताओ कि खाने में क्या बनाया?’

रजनी सकपका कर कहती है ‘भाभी दाल चावल रोटी सब्जी बनाई है, आइये भोजन कर लीजिए।’

मगर वहीं पर खड़ी रजनी की 7 वर्षीय बेटी चिंकी ने बड़े ही मासूमियत से कहा ‘चाची चाची, मम्मी झूठ बोल रही हैं। मम्मी ने कल से मुझे और पापा को खाना नहीं दिया और ना ही उन्होंने खुद खाया है। वह तो कल से मुझे घर पर रखे हुए बिस्किट ही खिलाई जा रही है।’

‘नहीं, वह तो ऐसे ही बस!!’ रजनी हड़बड़ा जाती है और आँखे दिखा कर चिंकी को डाँटने लगती है कि बीच में ही सुरभि ने कहा ‘रजनी बस, अब कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है बहिन, हम एक पड़ोसी होने के साथ-साथ साधर्मी बंधु भी हैं।

‘रजनी तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।’ कहकर सुरभि वापिस पलट जाती है।

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सूरज, रजनी का हाल जानकर बहुत दुखी हुआ ‘हमारी ही ग़लती है कि हम अपनी सुख सुविधाओं और समस्याओं में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि अपने आस-पास झांकने की भी ज़रूरत नहीं समझते। इतना कि हम ज़रूरत मंद लोगों को भी भूल गए कि वह किस हालात में हैं।’

सूरज एक पल गँवाये बिना ही अपने किराने वाले को फोन लगा कर कहता है कि ‘एक घंटे में एक महीने का हर ज़रूरी राशन इस address पर भेज दीजिएगा। यदि आपको समय ना हो तो मुझे बताइए मैं लेने आ जाऊंगा।’

‘नहीं सूरज भैया, मैं अपने लड़के से राशन ठीक समय पर भिजवा दूँगा, आप निश्चिंत हो जाइए।’ और ठीक 1 घण्टे बाद दुकानदार का फोन आ जाता है कि उसने राशन भिजवा दिया।

सुरभि ने रजनी को 2 घंटे बाद फोन लगाया ‘रजनी, क्या तुम्हारे पास सामान आया कुछ? रजनी ने ख़ुशी से भरे स्वर में कहा ‘हाँ भाभी, कुछ नहीं बहुत सारा आया है, इतनी ज़रूरत थोड़े न थी।’ और भर्राई आवाज़ में रजनी कह उठती है ‘मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भूल पाऊंगी भाभी।’

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