कहानी अपने लोग – लॉकडाउन की एक दर्दनाक तस्वीर
कहानी अपने लोग – लॉकडाउन की एक दर्दनाक तस्वीर। सभी पाठकों को रिंकी जैन का सादर नमस्कार। आज लॉक डाउन को एक महीना हो गया। कोरोना के चलते घरों में फंसे करोड़ों कामगारों की स्थिति चिंतनीय है। यह कहानी एक ऐसे सजातीय परिवार की है जो जैसे तैसे इस विपत्ति के काल मे अपना सम्मान बचा कर रखना चाहता है। भूखों मरना मंज़ूर है लेकिन किसी के आंगे हाथ फैलाना उसे मंज़ूर नहीं। ऐसे समय में हमारा कर्तव्य है कि अपने आसपास रह रहे ऐसे ग़रीब परिवारों की ख़ैरियत अवश्य लें जिससे कोई भूखा न सोये। आपकी प्रतिक्रिया कहानी अपने लोग पर प्रतीक्षित रहेगी
कहानी अपने लोग
सूरज का मार्बल का बड़ा बिजनेस है। हर रोज सुबह दस बजे वह अपनी शॉप पर चले जाया करते थे। मगर पिछले 16 दिनों से lockdown की वजह से घर पर ही रहकर सरकार की गाइडलाइन का पालन कर रहे थे। आजकल उनकी रोज़ की आदत बन गई थी कि सुबह दस बजे एक हाथ में morning tea और दूसरे हाथ में मोबाइल फोन कान पर लगा कर बालकनी पर खड़े खड़े चाय के साथ किसी न किसी से बात करते रहना।
सूरज के घर के ठीक सामने एक निर्धन परिवार रहता था जो उनका ही साधर्मी परिवार था। उस घर में सुमेश अपनी पत्नी रजनी और दो बच्चों के साथ रहा करता है।
सुमेश की बाजार में एक ठीक-ठाक सी पान की दुकान है, मगर वह भी lockdown की वजह से 16 दिनों से बंद थी। सूरज को अनायास ही सुमेश की पत्नी रजनी किचन में काम करती हुई दिख जाया करती थी।
क्योंकि रजनी की किचन सूरज की बालकनी से दिखती थी इसलिए कुछ दिनों से घर पर रहने की वजह से बार-बार फोन पर बात करते-करते बालकनी पर जाने पर उसकी नजर अक्सर किचन में काम करते हुए रजनी पर पड़ जाती थी।
एक दिन सूरज की पत्नी सुरभि अपने मोबाइल पर एक मैसेज दिखाती हुई कहती है कि ‘देखिए सूरज, यह मैसेज फेसबुक whatsapp पर चल रहा है कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री राहत कोष में स्वेच्छा से अधिक से अधिक दान दीजिए ताकि अपने देश का कोई भी गरीब व्यक्ति, परिवार ना तो भूखा सोये ना ही भूख से मरे’..
सूरज को अचानक कुछ याद आता है और वो आश्चर्य से कहता है ‘क्या? यह तो हम अपनी सुख-सुविधाओं में भूल ही गए थे, सुरभि मैंने कल से रजनी को किचन में काम करते नहीं देखा है, तुम जाओ और उसके घर पर देखकर आओ कि उसके क्या हालात हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि दिया तले ही अंधेरा हो। आज lockdown को सोलह दिन हो गये हैं। अभी और भी बढ़ सकता है।’
सुरभि कहती है कि ‘मैंने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। मैं अभी जाती हूँ।’
बहुत ही अच्छा आपने घटना के बारे में लिखा दिल को झकझोर कर दिया
bahut achchha hi lekh h jo hakikat bayan karta h padhkar aankho me aansu aa gye
आपका बहुत बहुत धन्यवाद।