पानी पर हाहाकारी कविता। कविता-जल बचाओ जीवन बचाओ । Kavita -Jal bachao jeevan bachao

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कोई तो नई कहानी कर दो,
कोई तो अलख जलाओ
आओ आओ सब मिल आओ,
मिलकर नीर बचाओ।

बूँद नहीँ है यह अमृत है,
ऐसे नहीँ बहाओ
आओ आओ सब मिल आओ,
मिलकर नीर बचाओ ।

जैसे स्वांस बिना है दुष्कर,
जी ना सका कोई ना
वैसे ही आसान नहीँ है,
जल बिन जीवन जीना।

बूँद बिखरती जब अवनी पर,
तब तृण जीवन पाये
पुष्प महकते हैं बगिया में,
पंछी गीत सुनाये।

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कैसे छलकेंगी ये अंखिया,
कैसे पीर बहेगी
कैसे राधा गोरी श्याम से,
मन की बात कहेगी।

क्या अनुचित कर डाला हमने,
कब यह बोध जगेगा
पानी पानी की त्राहि में,
इक दिन लहू बहेगा।

भूल गये तो याद करो वो,
महाराष्ट्र का किस्सा
लातूर बीड मराठवाडा का,
निर्जन सूखा हिस्सा।

खेत खेत फैला सन्नाटा,
गागर घट कुम्हलाए
घाट घाट में निर्मम सूखा,
अन्न कहाँ से आये।

धार कुंद हो गई हलों की,
खलिहानों में रोया
वर्षों से हलधर ने खेत में,
एक बीज ना बोया।

रक्त बह उठा जल की खातिर,
त्राहि त्राहि है होती
संगीनों के साये में इक,
बूँद को जनता रोती।

उधड़ गई धरती की परतें,
खेत हो गये बंजर
वर्षों बीत गये वृष्टि को,
निर्मम हुआ समंदर।

पर्वत हुई वेदना जाकर,
करनी किसे सुनायें
रक्त बह रहा था आँखो से,
नीर कहाँ से लायें।

बूँद बूँद अमृत की हमने,
हो बेदर्द बहाई
निर्लज्जों की कौन सुनेगा,
किससे करें दुहाई।

क्या यह इतना दृश्य भयावह,
है कम दिखलाने को
जल है जीवन शब्द तीन हैं,
बहुत हैं समझाने को।

बूँद बूँद अमृत दे कर,
सृष्टि नें प्रचुर बनाया
व्यय अपव्यय में फर्क ना जाना,
जलधन व्यर्थ लुटाया।

क्या सोचेंगी क्या पायेंगी,
आने वाली नस्लें
क्या हम उन्हें विरासत देंगे,
चिंतन थोड़ा कर लें।

अब भी वक्त है जाग उठो,
मौलिक अभियान चलाओ
आओ आओ सब मिल आओ,
मिलकर नीर बचाओ।

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