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   दीप प्रज्ज्वलन शायरी 

दिन डूबता है डूबने दो, आप शाम से ढलते रहिये
सुबह सूरज हथेलियों में होगा, चिरागों से जलते रहिये।

हम तो खुद दीप बने झिलमिल, तेरे चरणों में जलते हैं
तेरी रहमत के ध्रुव तारे, बन पुष्प हृदय में खिलते हैं
सुख की खुश्बू सृष्टि में है, क्या अन्धकार हम भूल गए
यह दिव्य ओज यह दिव्य दिवा, सब तेरी कृया से पलते हैं।

सुख के-दुःख के सब रंग तेरे, हम क्या समझें हम क्या जाने
जब डोर तुम्हारे हाथ में है, फिर क्या संशय क्यों घबड़ायें
इक ज्योति जले जलती ही रहे, नस नस में तेरी कृपा बहे
जिस रंग में रंगना हो रंग दो, किस रंग हो तुम हम क्या जानें।

क्या अंधकार से डरना अब, आओ सूरज बन जाते हैं
धरती अम्बर के तम सारे, जिससे डर कर छट जाते हैं
इक नूर बहे रूहानी सा, रौशन यह आलम हो जाये
आओ मित्रो हम मिल करके , इक झिलमिल दीप जलाते हैं।

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