Love Shayari । Romantic shayari । Mohabbat ki shayari । रोमांस की शायरी । दिल को छू लेने वाली शायरी

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तकलीफें सहन है साहेब
बस कोई अपना न दे।
ख़ुद को तुझमें मिला लिया है
तुझसे मिलना छोड़ दिया अब।
मेरे मेहबूब तेरी रहमतें देख
मेरी आँख भर भर आती है
हमारी गुज़ारिशें कम न हुईं
तुम्हारी नवाज़िशें कम न हुईं।

 

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दर्द रुसवाई वादाख़िलाफ़ी
प्यार में सब ग़वारा है मुझे
बस ये जो इंतज़ार है न तेरा
ये मेरी बर्दाश्त से बाहर है।
शरारतें जी उठीं मैं बच्चा हो गया
ये ज़माना फिर से अच्छा हो गया
वक़्त ने तो बेईमान बना दिया था
तेरी प्यार में फिर से सच्चा हो गया।
अपने होने का इतना तकाज़ा भी क्यों
हम भी कौन सा तुम्हें आजमाने वाले हैं।
कई बार सोचा कि तुम्हें सच बता दूँ
मगर तेरे ऐतबार ने मेरी हिम्मत तोड़ दी।

 

 

इश्क ज़ुस्तज़ुये अंज़ाम कहाँ देखता है
ज़िद का सफ़र है मुकाम कहाँ देखता है।
अगर मरीज़ होने से तवज़्ज़ो मिलती है
तो ये ख़ुदा मुझे बीमार ही बनाये रख।
ये तेरी मनमर्जियाँ बहुत नागवार हैं मुझे
कहते फिरते हो कि हम फिजूल रोते हैं
यूँ मुकरना अपने वादों से क्या जायज़ है
अरे ज़नाब इश्क के भी कुछ उसूल होते हैं।
ये समंदर कुछ रहम कर थोड़ा तो जीने दे
मैंने कब चाहा कि तू मुझे मोतीं दे नगीने दे
वो जो तेरी आँखों की कोरों से छलकता है
उसी के दो घूँट पियूंगा एक बार तो पीने दे।
बात से मुकरने का चलन अब जोरों पर है
ये सहूलियत का मामला है अब फैशन में है।

 

रात तेरे मखमली दामन से लिपट सोया था
सुबह हुई और दुनियादारी ने सुकूँ छीन लिया।
आज ज़िन्दगी फिर से तन्हा है फिर उदास है
कौन सा पहली मर्तबा है इसमें क्या खास है।
तुम मुझे पहचाने पहचाने से क्यों लगते हो
ऐसे जैसे हमारा कुछ पुराना हिसाब बाकी है।
चिट्ठियों में तो क्या क्या न कह दिया तुम्हें
सामने हो तो ज़ुबान लड़खड़ाने सी लगी है।
ये फलक आज एक बादल का टुकड़ा दे दे
मैंने हसरतें निचोड़ी हैं मेहबूब पर बरसानी है।
शाम महफ़िल में यूँ दूर दूर यूँ अलहदा रहना
इक पल भी सोचा कि मुझ पर क्या गुज़री है
अगर इतना ही रुसवाई का डर तुम्हें सताता है
तो मुझे बताओ मुझसे मोहब्बत ही क्यों की है।
जानें क्यों मुझे अब ऐतबार सा होने लगा है
कि तूँ साथ होती तो मैं किस्मत का सुल्तान होता।

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